UP में PDA पाठशालाएँ बनीं वैकल्पिक शिक्षण मॉडल,वापस लेना पड़ा “क्लोजर और मर्जर नीति” का फैसला,

उत्तर प्रदेश सरकार की प्राथमिक विद्यालयों की “क्लोजर और मर्जर नीति” को गहरा धक्का लगा, सरकार को प्राथमिक विद्यालयों पर लागू की गयी नीति को विपक्षी पार्टियों और जन दबाव में वापस लेना पड़ा|

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने “PDA पाठशाला” खोलने का ऐलान किया जिससे पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समाज के बच्चों के लिए वैकल्पिक शिक्षा केंद्र  उपलब्ध हो सके यह ऐलान आंदोलन की तरह पूरे प्रदेश में फैल गया तो सरकार ने अपने तुगलकी फरमान वापस ले लिया!

नई शिक्षा नीति 2020 के आधार पर योगी सरकार ने ‘शिक्षा के मौलिक अधिकार’ को दरकिनार करते हुए उत्तर प्रदेश के उन प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने का फैसला लिया जिसमें बच्चों की संख्या 50 से कम हो गयी है “क्लोजर और मर्जर नीति” के तहत हजारों प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों पर ताले लगा दिये गए!

PDA पाठशालाएँ न सिर्फ ताले लगे स्कूलों के सामने खुलीं, बल्कि उन्होंने योगी सरकार की संवेदनहीनता पर सवाल भी खड़े कर दिए सपा कार्यकर्ताओं ने हर उस गाँव और कस्बे में PDA पाठशालाएँ खोलीं, जहाँ सरकारी स्कूल बंद किए जा रहे थे। यह कदम इतना जनसहयोगी और लोकप्रिय हुआ कि अंततः योगी सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ा और कई स्थानों पर स्कूल बंद करने की प्रक्रिया रोक दी गई!

लेकिन बीजेपी सरकार ने आलोचना स्वीकार करने के बजाय सपा कार्यकर्ताओं को टारगेट करना शुरू कर दिया रचना गौतम समेत कई समर्पित कार्यकर्ताओं पर योगी पुलिस द्वारा उन्हें डराने के लिए झूठे मुकदमें लिखवा दिए गए सपा कार्यकर्ताओ  का कहना कहना है कि सरकार का यह दमन यह दर्शाता है कि राज्य की सत्ता विरोधी आवाज़ों को कुचलने पर तुली हुई है।

“अखिलेश यादव की PDA पाठशालाएँ न सिर्फ एक , बल्कि यह दिखाने का प्रतीक भी कि अगर सरकार असफल हो जाए, तो समाज अपनी ज़िम्मेदारी समझता है।”

योगी आदित्य नाथ सरकार से असल सवाल यह है कि स्कूल क्यों बंद हो रहे हैं, इन स्कूलों को बंद करने की बजाय असली शोध का विषय यह होना चाहिए कि आख़िर इन प्राथमिक विद्यालयों में छात्र घट क्यों रहे हैं, क्यों खुद अध्यापक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते?

क्यों ग्रामीण अभिभावक अपने बच्चों को दूर प्राइवेट स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं?”

क्या वजह है कि 1 से 5 व 6 से 08 तक के सभी कक्षाओं को सिर्फ 2 या 3 शिक्षक पढ़ाते हैं और वो भी हिन्दी, अंग्रेज़ी, गणित, विज्ञान, खेल सहित सब कुछ पढ़ाते हैं जहाँ न तो ठीक से इंफ्रास्ट्रक्चर है न लैब है और न लाइब्रेरी ही है, इन स्कूलों में विषय विशेष अध्यापक क्यों नहीं है?

सरकार को जवाब देना चाहिए कि इतने कम संसाधनों और शिक्षकों के साथ “क्वालिटी एजुकेशन” न मिलने के कारण सक्षम अभिवाहक अपने बच्चों को उच्च क्वालिटी एजुकेशन के लिए प्राइवेट स्कूलों में भेजनें पर मजबूर हैं.

 

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