आरक्षण का मूलाधार है किसान का कोड़ा

महात्मा ज्योतिबा फूले ने राष्ट्र के संसाधनों में वंचित वर्गों के प्रतिनिधित्व की बात अपनी ऐतिहासिक रचना “किसान का कोड़ा” में किया फूले ने कहा कि देश के तमाम संसाधनों भूमि, जल, शिक्षा, नौकरियाँ, राज्यसत्ता, मंदिर, और दान पर केवल ब्राह्मणों और उच्च जातियों का नियंत्रण है यह किताब ब्राह्मणवादी व्यवस्था, शोषण, अशिक्षा और शासन में बहुजन समाज की गैर-मौजूदगी पर तीखा प्रहार करती है इस किताब को भारत में सामाजिक क्रांति का घोषणापत्र कहा जाता है।

फूले ने इसे “शूद्र- अतिशूद्रों के अधिकारों की डकैती” कहा उनका मानना था कि जब तक किसान, मजदूर, शूद्र और स्त्रियाँ जो समाज का बहुसंख्यक हिस्सा हैं, सत्ता और संसाधनों में भागीदारी नहीं पाएँगे, तब तक समाज में न्याय नहीं हो सकता फूले ने प्रशासन, न्याय व्यवस्था और शिक्षा में बहुजन समाज को प्रतिनिधित्व देने की ज़ोरदार वकालत किया।

26 जुलाई 1902 यही वो ऐतिहासिक दिन है जब छत्रपति साहूजी महाराज ने कोल्हापुर रियासत में OBC, SC, ST के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्था लागू कर एक क्रांतिकारी पहल किया यह केवल आरक्षण नहीं था, बल्कि सदियों से शोषित-वंचित समाज को सम्मान और हिस्सेदारी देने की शुरुआत थी।

बाबा साहेब अंबेडकर ने आज़ाद भारत में इसे संवैधानिक अधिकार बनाकर सामाजिक न्याय की नींव को मज़बूत किया उन्होंने आरक्षण को समान अवसर, प्रतिनिधित्व और विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का रास्ता बनाया।

आज यह आरक्षण नीतियाँ सामाजिक बराबरी की गारंटी हैं ज्योतिबा फूले के सपनों को साहू जी महाराज ने दिशा दिया और आजाद भारत में बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान में लागू कर इसे कानूनी अधिकार बनाया।

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