दुनिया की सभी सभ्यताओं में चरवाहों का उल्लेख मिलता है पुरातात्विक अवशेष भी यह प्रमाणित करते हैं कि पशुपालक चरवाहों ने आदिकाल से ही गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊँट, सुअर आदि पाले इन्हीं से मानव को दूध, दही, घी, मांस, ऊन, चमड़ा और गोबर मिला, जिससे भोजन, वस्त्र, परिवहन और जीवन की अन्य आवश्यक वस्तुएँ संभव हुईं सच तो यह है कि पशुपालन और कृषि के बिना मानव सभ्यता का विकास संभव ही नहीं था।
चरवाहा समुदाय प्राचीन काल से ही मानव सभ्यता का निर्माता रहा मेसोपोटामिया, मिस्र, ग्रीस, रोम और सिन्धु घाटी सभ्यता इन सभी सभ्यताओं की नींव में चरवाहों का योगदान रहा सिन्धु घाटी सभ्यता को तो “चरवाहों की सभ्यता” कहा जाता है, जहाँ पशुओं के जरिए वस्तुओं का आदान-प्रदान और व्यापार होता था भारत की प्राचीन गुफाओं में बने चित्र और शिलालेख चरवाहों के जीवन और संस्कृति को आज भी जीवित रखते हैं!
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 18, श्लोक 41) में वर्ण विभाजन की जो बात कही गई है, उसे अर्जुन ने कृष्ण से सुना लेकिन सोचने की बात है क्या भगवान स्वयं मानव-मानव में भेद कर सकते हैं? क्या चरवाहा कृष्ण अपनी ही जाति को नीच या पिछड़ा कह सकते थे? यह स्पष्ट है कि गीता में जो कुछ लिखा गया, वह कृष्ण के उपदेश से अधिक किसी और की कलम का असर नहीं है तो कृष्ण को सबको समान नजारिये से देखना था, यही सबसे बड़ा छल है। श्रीकृष्ण गोपालक थे तो फिर उन्हें और उनके चरवाहा किसान समाज को नीचा बताने की साजिश क्यों रची गई? असल में ब्राह्मण धर्मग्रंथों ने दूध बेचने और पशुपालन के काम को नीच कहा मनुस्मृति (10/92) में लिखा है कि यदि कोई ब्राह्मण दूध बेचे तो वह शूद्र हो जाएगा यानी दूध का काम करने वालों को जबरन शूद्र बना दिया गया।
व्यासस्मृति में ग्वालों को अछूत तक कह डाला गया यानी चरवाहों के परिश्रम को नीचा बताकर ब्राह्मण खुद को ऊँचा साबित करना चाहते थे यह सवाल किसी भी समझदार इंसान को झकझोरना चाहिए जहाँ श्रम है, पसीना है, मेहनत है, वहाँ ब्राह्मण क्यों जाएंगे? उन्होंने तो सिर्फ़ शास्त्र लिखे और दूसरों पर थोपे वैसे इतिहासिक दृष्टिकोण से श्री कृष्ण का कोई उल्लेख नहीं है!
चरवाहा किसान समाज मानवता का पालनहार रहा है चाहे वह ईसा मसीह रहे हो, पैग़म्बर मुहम्मद रहे हो या चरवाहे श्रीकृष्ण रहे हो इनको चरवाहों ने अपना नायक माना फिर इतिहास को तोड़-मरोड़ कर चरवाहा कमेरा किसानों को हीन बनाने की कोशिश क्यों हुई? क्योंकि यह ब्राह्मणवादी षड्यंत्र था परिश्रमशील समाज को नीचा दिखाकर शोषण को स्थायी बनाने का था वर्तमान परिदृश्य में चरवाहा किसानों के नायक बुद्ध, फूले, अम्बेडकर, पेरियार, रामस्वरूप वर्मा, जगदेव बाबू और ललई यादव हैं जिन्होंने समानता और मानवता की बात किया!
जिस दिन बहुजन चरवाहा किसान समाज इन ब्राह्मण धर्मग्रंथों को ध्यान से पढ़-समझ लेगा, उसी दिन से उसका हिन्दुत्त्व से मोहभंग हो जाएगा चरवाहा श्रमशील किसान ऊँच-नीच का नहीं समानता, बन्धुता और मानवता का पोषक रहा है।