05 सितम्बर, 1974 का दिन भारतीय राजनीति और सामाजिक न्याय के इतिहास में एक अमिट घटना के रूप में दर्ज है इसी दिन अरवल (बिहार) के कुर्था ब्लॉक में मनुवादी ताक़तों की गोली का शिकार होकर शोषित समाज के महानायक, भारत के लेनिन कहे जाने वाले बाबू जगदेव प्रसाद शहीद हो गए वे उस दौर में शोषितों, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की आवाज़ बुलंद करने वाले सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व थे।
जगदेव प्रसाद जी ने अपने जीवनकाल में सिर्फ़ सत्ता की राजनीति नहीं की, बल्कि राजनीति को सामाजिक परिवर्तन और बराबरी का औज़ार बनाया उनका मानना था कि भारतीय समाज का 90% हिस्सा शोषित है और 10% हिस्से ने शताब्दियों से इन पर वर्चस्व जमाए रखा है यही कारण था कि उन्होंने नारा दिया
“100 में नब्बे शोषित हैं, शोषितों ने ललकारा है, धन धरती और राजपाठ में, 90 भाग हमारा है।”
यह नारा सिर्फ़ राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग नहीं था, बल्कि शोषित समाज को उनकी असली ताक़त का एहसास कराने वाला क्रांतिकारी उद्घोष था। 1967 में जब उन्होंने “शोषित दल” का गठन किया तो अपने पहले भाषण में ही भविष्य की राह स्पष्ट कर दिया था उन्होंने कहा:–
“इस लड़ाई में पहली पीढ़ी शहीद होगी, दूसरी पीढ़ी जेल जाएगी और तीसरी पीढ़ी राज करेगी जीत अंततः हमारी ही होगी।”
जगदेव प्रसाद ने हमेशा कहा कि क्रांति मूर्तियों और तस्वीरों से नहीं आती, बल्कि विचारों से आती है यह सवाल जिंदा है कि क्या हम उनके विचारों को समाज तक पहुँचा पाए हैं?
आज भी शिक्षा, नौकरियों, ज़मीन और सत्ता में शोषित वर्ग की हिस्सेदारी उनके अनुपात में नहीं है आरक्षण पर हमले लगातार हो रहे हैं, सामाजिक असमानताएँ गहरी हैं और जातिवादी ताक़तें लोकतंत्र को खोखला कर रही हैं ऐसे समय में जगदेव बाबू की विचारधारा और भी प्रासंगिक हो जाती है।
अमर शहीद बाबू जगदेव प्रसाद सिर्फ़ एक नेता नहीं थे, बल्कि सामाजिक न्याय के आंदोलन के प्रतीक थे उनकी शहादत हमें यह याद दिलाती है कि असमानताओं से समझौता नहीं किया जा सकता आज उनकी पुण्यतिथि पर सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाएं और उस अधूरे सपने को पूरा करें, जिसके लिए उन्होंने अपनी जान न्यौछावर किया था।
